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खेल मुकद्दर का दो गांव के दो ठाकुरो की कहानी है। एक का नाम दया राम (दारा सिंह) और दूसरे का नाम सोहन शाह (माग सिंह) दोनो में बहुत दोस्ती थी। दया राम बहुत सीधा सादा आदमी था मगर सोहन शाह शराब शबाब का शोकीन मगर सोहन शाह की इन आदतो का दया राम पर कोई असर नहीं था।
अचानक यह दोस्ती दुशमनी में बदल गई और दया राम के हाथ से सोहन शाह का खुन हो गया और दया राम को फांसी लग गई।
दया राम के तीन बच्चे थे एक का नाम धर्मा (दारा सिंह) दूसरे का नाम कर्मा (वरिन्दर) और लड़की ज्योति (रजनी शर्मा) ऊधर सोहन शाह का एक ही लड़का था। जिस सोहन शाह की पत्नि (आशा शर्मा) ने अपने पति के हरकतो के देखे हुये उस के मामा के पास इंगलैंड भिजवा दिया था। समय बीतता गया बच्चे बड़े हो गये।
धर्मा (दारा सिंह) टरक चलाने लग गया। उसकी मुलाकात आशा (आशा पारिख) से हुई। आशा की कार रास्ते में पँचर हो जाती है तो कुछ गुण्डे उस पर हमला करते है। वहां धर्मा उसे बचाता है। इधर कर्मा की मुलाकात रणजीत से होती है। और फिर यह पुरानी दुशमनी पैदा हो जाती है। और इस तरह रणजीत और कर्मा की मुलाकाते होती रही कभी कबड्डी के मेदान में कभी गांव की लड़की गुड्डी की ईज्जत बचाने के लिये। इस तरह यह दुशमनी बढ़ती गई और यह दुशमनी क्या रंग लाई। But life is "KHEL MUQADDAR KA".
[From the official press booklet]